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Thursday, May 31, 2012

‎" श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड “ ( 1863 - 1939 ) touching


  • ‎" श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड “ ( 1863 - 1939 )
    " जन्म अवम बचपन "

    “श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड” जी महाराज का जन्म 17 मार्च 1863 इसवी में "कल्वाने' नाम के, एक देहात में हुआ / 'कल्वाने' , यह गाँव महाराष्ट्र राज्य के 'खानदेश' विभाग से जुदा हुआ है / माता-पिता ने उनका मूल नाम "गोपाल" रखा था / गोपाल काशीनाथ गायकवाड ने अपने गरीब माता-पिता के घर जन्म लिया / बचपन से ही गोपाल को गरीबी की समस्या ने घेव्रे हुआ था / उम्र के 12 साल तक गोपाल को अपने 'कल्वाने' गाँव में जानवरों/ पशुयों को चर्वाने वाले ‘चरवाहे’ का काम करना पड़ा था // इतना ही नहीं बल्कि, 12 साल की आयु तक सुने पाठशाला का मुंह तक भी नहीं देखा था // ‘क्ल्वाने’ गाँव के 'काशीनाथ गायकवाड' का सम्बन्ध " वड़ोदा" संसथान के राज घराने से था /
    बड़ोदा संसथान के राणी 'यमुनाबाई गायकवाड' की गोद दुर्भाग्यवश से खली थी / अपने संसथान की राजगद्दी चलाने वाला वारस के रूप में राणी यमुनाबाई ने 'गोपाल' को गोद लिया // गोपाल को गोद लेने का समारोह 27 मई , 1875 में संपन्न हुआ और 'गोपाल' का नाम " सयाजीराव गायकवाड" रखा गया / 27 मई , 1875 से 'सयाजीराव गायकवाड' "बड़ोदा" संसथान के ‘राज गद्दी’ के वारस बने /
    12 साल तक अनपढ़ रहे 'सयाजीराव गायकवाड' को शिक्षा देकर लायक बनाने की योजना राणी यमुनाबाई ने बनाई // 'बड़ोदा' संसथान के 'ब्रिटिश रेसिडेंट' तथा दीवान राजा, sir T . Madhavrav ने 'सयाजीराव गायकवाड' को शिक्षित करने की जिम्मेदारी निभाई // 'सयाजीराव गायकवाड' बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि के रहे थे / अपनी शिक्षा ग्रहण करने के बाद 'सयाजीराव गायकवाड' का राज्य-भिषेक, 18 साल की आयु में 28 नवम्बर 1881 में हुआ // आयु के 18 साल में ही 'श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड' "बड़ोदा" संसथान की राजगद्दी पर विराजमान हुए और कारोबार के 'सत्तासुत्रों' को अपने हाथ में लिया // कुच्छ ही दिनों में महाराज ने सफल कारोबार चलाने का अध्ययन किया / बचपन से ही महाराज होशियार, होनहार तथा जिद्दी सवभाव के थे / इन्हीं गुणों से महाराज ने बहुत ही कम समय में अपना व्यासंग सिद्ध करके ‘राजा’ की योग्यता पाई //

    "शुद्र राजाओं के अपमान का इतिहास "

    भारत के इतिहास में जितने भी 'शुद्र' राजा हुए, ब्राह्मणों ने उन्हें 'धर्म' के नाम पर गुमराह करके अपमानित किया // यह भी एक एतिहासिक कड़वी सच्चाई है // छत्रपति शिवाजी महाराज को भी शुद्र कह कर ब्राह्मणों ने राज्याभिषेक करने को इंकार कर अपमानित किया / आगे जब शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया वोह भी 'वेदोक्त पद्धति से ना होकर 'पुराणोक्त' पद्धति से किया गया / "हिन्दू राज" की स्थापना करने वाले 'शिवाजी महाराज' को ब्राह्मणों ने बुरी तरह से अपमानित करने का नीच कार्य किया /
    इतिहास में ब्राह्मण जाति दुयारा शुद्र राजाओं को अपमानित करने का सिलसिला बहुत जोर से चला / छत्रपति बड़े ‘शाहूजी महाराज’ ने अष्ट प्रधान मंडल रद्द करके , ब्रह्मण पेशवा को 'पेशवापद' पर बिठाने के आदेश देने से ब्रह्मण तिलमिला उठे और आक्रमक बने / ब्राह्मणों ने जब ब्राह्मणी राज में 'वेदोक्त पद्धति' को महत्व देकर 'शुद्र राजाओं' का और शुद्र समाज का धार्मिक और सामाजिक छल किया / ‘नाना फडणविस’ ने तो षड्यंत्र रचा कर ' सतारा' के दुसरे 'शाहू जी महाराज' की मूंज 'पूरानोयोक्त पद्धति' से करके उन्हें भी अपमानित किया // उसी प्रकार से 'सतारा' के 'राजा प्रताप सिंह' को भी ब्रह्मण पंडितों से अपना वर्चस्व सिद्ध करने के लिए संघर्ष करना पड़ा // राजऋषि छत्रपति शाहू जी महाराज "कोल्हापुर" के शुद्र राजा थे / ब्रह्मण पुरोहितों ने उनका राज्याभिषेक भी विधि 'पुरान्नोकत पद्धति' से करके उनको भी अपमानित किया था //
    बड़ोदा संसथान में भी ब्रह्मण पुरोहित जाति, ‘बड़ोदा राजघराने’ के सम्बन्ध में सभी विधि पुरानोकत पद्धति से कर रही थी/ श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड महाराज को, भी यूरोप से लौटने के बाद ‘शुद्र’ होने के नाते, प्रायशचित करना पड़ा था / अपने संसथान में 'सयाजीराव गायकवाड' ने राजोपाध्य 'राजाराम शास्त्री' को वेदोक्त विधि करने की आज्ञा दी , परन्तु 'राजाराम शास्त्री' ने ऐसा करने से इनकार कर दिया // शुद्र राजाओं के ऊपर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए, इस ब्रह्मण ने इस्तीफा देना पसंद किया, मगर, शुद्र राजा 'सयाजीराव गायकवाड' की आज्ञा नहीं मानी // शुद्र राजाओं की ब्राह्मणों दुयारा अपमानित करने वाली कहानियां इतिहास में बहुत पढने को मिलती हैं / शुद्र राजाओं को अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए हर समय, ब्राह्मणों से संघर्ष करना पढ़ा / "श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड' महाराज को ब्राह्मणों ने 'शुद्र' कह कर अपमानित किया / यह एक एतिहासिक सत्य है / स्वाभिमानी और प्रतिभा संपन्न 'श्रीमंत सयाजीराव महाराज' इन घटनाओं से बहुत दुखी होते थे / ब्राह्मणों के इस वयवहार से महाराज का क्रांतिकारी मन्न 'ब्राह्मणी धर्म' के विरुद्ध संघर्ष करने को जाग उठा था // अपने जीवन के काल खंड में ‘सयाजीराव गायकवाड’ महाराज ने, ब्राह्मणों समाज व्यवस्था को नष्ट करने का क्रांतिकारी कार्य करके क्रांति संग्राम के सेनानी साबित हुए //

    "सत्य शोधक समाज " से प्रेरित सयाजीराव गायकवाड

    प्रतेक इंसान का अपना एक चरित्र होता है / महापुरषों के अपने चरित्र असामान्य होते हैं / अपने जीवन काल में इंसान किसी न किसी के चरित्र से प्रभावित होता है // सामाजिक क्रांति संग्राम के प्रणेता ‘महात्मा फुले’ ने 1890 तक 'बहुजन समाज' को मुक्ति दिलाने हेतु , अपना जीवन समर्पित किया / राजा ‘श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड’ ने भी अपने जीवन काल में क्रांतिकारी कार्य को अग्रक्रम दिया था / 1885 तक्क महात्मा फुले के क्रन्तिकार्य ने सारे महाराष्ट्र को प्रभावित किया था // अपने 'सत्य शोधक समाज ' आन्दोलन से 'बहुजन समाज' को जागृत करने में ‘महात्मा फुले जी’ समर्पित थे / महाराष्ट के हर तालुका और गाँव गाँव में उनके सत्य शोधक समाज के कार्यकर्ता थे /

    1885 में श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड, पेशवाओं के "पूना" में आये थे / महात्मा फुले और उनकी भेंट 'पूना' में ही हुई थी / सयाजीराव गायकवाड 'पूना' में दो महीने तक रुके थे / इन दो महीनों में महाराज का महा. फुले के साथ सहवास बढ़ा / महात्मा फुले ने उनका ‘राजा’ के नाते सम्मान करके, सवागत समारोह रखा था // महात्मा फुले तथा उनके अनुयायिओं ने इस सभारंभ में 'सत्य शोधक समाज' के तत्व और कार्यप्रणाली पर विचार रखे / 'सत्य शोधक समाज ' के मत्प्र्नाली से महाराज बहुत प्रभावित हुए // अपने दो महीने के काल में सयाजीराव गायकवाड स्कूलों के कार्यक्रमों में उपसिथत रहे / युवा सयाजीराव गायकवाड , महात्मा फुले के 'बहुजन समाज' के उद्धार के कार्य से प्रभावित हुए / इसी प्रभाव के संस्कार को लेकर 'सयाजीराव गायकवाड' बड़ोदा चले गए /

    " ब्राह्मणों के विरुद्ध रचनात्मक बंड पुकारा "

    एक ‘चरवाहे’ से लेकर 'बडौदा संसथान' के ‘राजा’ बन कर ‘राजगद्दी’ सँभालने तक्क 'सयाजीराव गायकवाड' महाराज को जिन्दगी ने बहुत सारे अनुभव दिए थे / गरीबी की रेखा के निचे जिन्दगी जीने वाले माँ-बाप और जिन्दगी के साथ झेल रहे संघर्ष को उन्होंने अनुभव किया था / बडौदा संसथान के राजा बनने से उनको शिक्षा का ज्ञान मिला था / शिक्षा के ज्ञान से, उनको हर समस्याओं का जढ़ खोजने के शक्ति मिली थी / राजा बनने की हैसियत से 'यूरोप' आदि देशों में जाने का मौका मिलने से, नया नया ज्ञान प्राप्त हुआ था / नया नया ज्ञान प्राप्त करने से सवभाव से क्रांतिकारी ठहरे उनके मन में क्रांतिकारी संस्कारों में अभिब्रिद्धि हो चुकी थी / राजा बन कर भी ‘शुद्र’ कह कर अपमानित करने वाले, ब्राह्मणी समाज व्यवस्था से प्रभावित रुढीवादी परपराओं के शिकार ठहरे ब्रह्मनेत्र समाज के दुखों को उन्होंने नजदीकी से अनुभव किया था / इन अनुभवों के परिणाम सवरूप ‘राजा सयाजीराव’ ने ब्राह्मणी समाज विवस्था को उखाड़ने के लिए , अपने संन्स्थान में ब्राह्मणों के विरुद्ध संघर्ष करने का निश्चय करके, रचनात्मिक कार्य को उन्होंने शुरू करने का मन्न में ठान लिया था // "सत्य शोधक समाज" के तत्वप्रनाली से प्रेरित 'सयाजीराव गायकवाड महाराज’ ने अपने संसथान म, ब्राह्मणी समाज व्यवस्था के विरुद्ध बहुजन समाज को क्रांति प्रवण करने का क्रांतिकारी शुरू किया //

    "ब्राह्मणों के विरुद्ध सामाजिक आन्दोलन चलाया "

    शिक्षा के कार्य के अलावा "बडौदा संसथान" में चले ब्राह्मणवादी विरोधी सामाजिक आन्दोलन को "सयाजीराव गायकवाड महाराज" ने प्रोत्साहित किया // महाराज की सोच समाज में मानवी मूल्यों को स्थापित करने की थी // सयाजीराव गायकवाड , जातिभेद के 'कट्टर' शत्रु थे, तथा बहुजन समाज में फैले अगिआन और अंध-विशवास के बह दुश्मन थे // सारे देश के संस्थानिकों में से एक महाराज सयाजीराव ही ऐसे थे, जिन्होंने अस्पर्श्यता विरोधी चले आंदोलनों को अपने संसथान से धन देकर और अपने विचार भी देकर प्रोत्साहित किया / महाराज इस क्रांतिकार्य से 'ब्राह्मणों ' के दुश्मन बने / अपने राजकीय कारोबार में शामिल 'ब्राह्मणों' ने महाराज के साथ चोरी- छुपे विरोध करके अपनी जाति का परिचय दिया //
    19 मार्च 1918 में बम्बई में भरे "छुआ -छात विरोधी परिषद " के अध्यक्ष , 'बडौदा' के नरेश "श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड" बने / बहुजन समाज का दूरदर्शी राजा दिन रात क्रांतिकारी के संग्राम में शरीर तथा बुद्धि से कार्यरत रहा / बम्बई में भरे हुए इस "छुआ - छात विरोधी परिषद" में महाराज ने कहा, " सामाजिक नव-निर्माण और शास्त्रीय ज्ञान के तीव्र आक्रमकता के सामने अज्ञान मुल्क , गलत फ़हमी और जाति अभिमान का, ज्यादा देर तक्क टिक पाना मुश्किल है /" हम सभी लोगों को हमारे धर्म में व्यवाहरिक सुधार लाकर 'छुआ - छात' की बीमारी के प्रशन को, जल्द से जल्द समापित करना चाहिए //
    श्रीमंत नरेश सयाजीराव गायकवाड की प्रेरणा से बडौदा संसथान में "सत्य शोधक समाज " आन्दोलन का कार्य जोरों से चलता रहा / महात्मा फुले के अनुयायिओं ने बडौदा संसथान में जाकर ब्राह्मणवाद विरोधी आन्दोलन चलाया // बडौदा संसथान के बहुजन जाग्रति लाने हेतु श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड जैसे राजा ने भी " सत्य शोधक समाज " के कार्य को प्रेरणा और हिम्मंत दिलाई // बडौदा के राजा ने, यह क्रांतिकार्य अपने संसथान में किया / भगवान् और मनुष्य के बीच 'दलाली' करने वाले दलाल बने 'ब्रह्मण पुरोहितों' की जरूरत नहीं है / हम ही इसके लायक हैं और हमारी विधियाँ हम खुद कर सकते है // इसी विचार के आतम सम्मान का आन्दोलन 'बडौदा संसथान' में भी चला, जिससे शूद्रों में जाग्रति पैदा हो गयी, और ब्रह्मण जाति देखते ही रह गई //

    "सरसेनापती के निर्माण हेतु योगदान "

    सामाजिक क्रांति संग्राम के प्रणेता 'महात्मा फुले' से प्रेरणा लेकर, 'ब्राह्मणवाद' को जढ़ से उखड फैंकने का क्रांतिकार्य करने वाले 'श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड ' महाराज ने ' बाबा साहिब डॉ. भीम राव आंबेडकर जी " को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए, 4 जून 1913 में शात्रवृति दे कर महान कार्य किया / इस एतिहासिक घटना से ही, 'महात्मा फुले' के क्रांतिकारी का कारवां, आगे लेकर जाने वाले, ' सरसेनापती डॉ. बाबा साहिब आंबेडकर' का निर्माण हुआ / अपने जीवन काल में, ब्रह्मण जाति से अपमानित शुद्र राजा 'सयाजीराव गायकवाड', 'ब्राह्मणवाद' की जढ़ उखड फैंकने का सपना देख रहे थे / उनके सपनों को साकार करने का काम 'बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी ने इस देश में किया /

    बहुजन समझ के उत्थान कार्य में दिन-रात लगे 'श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड महाराज' का देहांत 6 फरबरी 1939 में हुआ // महाराजा के देहांत की वार्ता सुनकर अपने शोक सन्देश में बाबा साहिब ने क्रतिगता पूर्व शव्दों में कहा, " महाराजा के रूप में 'बडौदा संसथान' का कर्त्ब्यगार राजा, सामाजिक सुधार कार्य के नेता और अछूतों का मित्र गवाया /" ................ हिंदी टाइप ...... तरसेम सिंह बैंस

    धन्यवाद सहित ::--) " सामजिक क्रान्तिसंग्राम के सेनानी " ................ बहुजन पब्लिकेशन ट्रस्ट , दिल्ली /

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