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Wednesday, July 11, 2012

BABA SAHEB KO MANA PR UNKI BAAT NAHI MANI


मित्रों आप सबके जानकारी व् जोश से पूर्ण ,और क्रन्तिकारी पोस्ट्स ने मुझे मेरी बीमारी के दिनों में काफी मदद की और तकलीफ भरे दिनों को काटने में भी काफी मददगार साबित हो रहे है मैं उन लोगो से नम्र क्षमा चाहूँगा जिनसे मैं चैट विंडो पैर संवाद नहीं कर पाया शीघ्र ही पुनः आपसे आपसे संवाद हेतु उलब्ध हो जाऊंगा ,परन्तु इन आराम के दिनों में कई बातें बातों पर विचार किया बाबा साहेब की किताबें पढ़ी हम सभी बाबा साहेब को निश्चय ही आंखमूंद कर मानते है परन्तु सवाल ये उठता है की कितने लोग बाबा साहेब को मानने वाले जानने वाले बाबा साहेब की मानते है :बाबा साहेब का सपना बहुजन शाषित देश का जिसमें सारी कुरीतिय व्याप्त संस्कृति नगण्य हो और विकासशील समतामूलक समाज हो क्या हम ऐसे समाज को आपस में निर्मित कर पाए है ?हम सभी हर जलसे में जोर शोर से कहते है की :-बाबा तेरा मिशन अधूरा हम सब मिलकर करेंगे पूरा. खत्म
मेरा सवाल सभी बहुजनो से ये है की मिलने के सन्दर्भ में वे प्रयास क्या कर रहे है ?
क्या मिलने से सबका अभिप्राय सिर्फ ये होता है की वो मोहल्लो में आपस में मिलते है ,शहरों में आपस में मिलते है ?
मैंने जो देखा और पाया तो स्थिति बहुत ही भयावह है हम मिलने की बात करने वाले ही उपजातियों से उभर नहीं पा रहे है सवर्णों से रोटी बेटी का सम्बन्ध के लिए ऊँची आवाज़ में बात करने वाले ही आपस में उपजातियों में रोटी बेटी का सम्बन्ध नहीं करते ,हममें वर्गवाद,क्षेत्रवाद,इस कदर हावी हो गया है की हम सिर्फ एक होने की बात भर ही कर सकते है एक कभी नहीं हो सकते
उदाहरण स्वरुप :हिन्दुवार्नानुसार चमार जाती के परिवार भंगी जाती में रिश्ते नहीं तलाशते पर ब्राह्मण और बनियों के घर में पहुचने के लिए रोटी और बेटी की बातें करते है और कहते है की जाती मिटाने का सिर्फ येही एक रास्ता है .एक इंजीनियर या डॉक्टर लड़का लड़का लड़की साथी ढूँढ़ते है तो अपने सामान पद वाला मतलब इस स्तर पर ये लोग भी अपने ही लोगो को असमान मानकर अपने से नीचे पद और वर्ग के लोगो को नकार कर एक और वीभाजन क्रम खड़ा कर रहे है .फिर इनमें भी एक क्रम है है की क्षेत्रवाद जिसमें एक चमार या कोई भी दलित जाती हो सकत है जातीयां मूलतः वही है नाम भाषाओ के अनुसार बदल जाते है ख्सेत्रिया आधार पर विभाजन की मनोस्थिति से ग्रस्त हो कर विवाह जैसे सम्बन्ध अपने ही क्षेत्र के अपने ही वर्ग के अपनी ही जाती के व्यक्ति के साथ संपन्न करने में विशवास करते है ऐसी स्थिति में बाबा साहेब के सपने को हम कैसे संपूर्ण कर सकेंगे?वर्गवाद ,क्षेत्रवाद,और जातिवाद का भाव हमपर इस कदर सवार हो गया है की सिर्फ वैवाहिक सम्ब्बंध ही नहीं हम और भी सामाजिक सम्बन्ध भी इन बातों को ध्यान में रखकर कर रहे है और ये सब देख कर तो ऐसा कदापि नहीं लगता की बाबा साहेब का सपना पूरा करने के लिए हम ज़रा भी प्रयास कर रहे है सिर्फ बातें करने से अगर आज़ादी मिलती होती तो गुलामी कभी किसी का हासिल न होती .
सोचिये कैसा होता यदि एक डॉक्टर या इंजीनियर या कोई भी अभी स्थिति प्राप्त व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से सम्बन्ध करता जो की उसकी स्थिति का न हो तो वो अपने से निम्न स्टार के व्यक्ति को अपने व्यक्तीत्व के प्रभाव से अपने बराबर ला सकने में कितना मददगार हो सकता?सोचिये येही अगर कोई दलितों में स्वयं को उंच जात का मानने वाला ऊँचे वर्ग का किसी और क्षेत्र का किसी और क्षेत्र के दलितों में निचले क्रम के जाती के व्यक्ति से सम्बन्ध करता और इस तरह से क्रमिक संबंधो का होना शुरू हो जाता तो क्या होता?मेरे ख्याल से पूरे भारत के दलित एक दिन एक सूत्र में बंधकर बाबा साहेब के अधूओरे सपने को अमलीजामा यकीनन पहना देते परन्तु अफ़सोस ऐसी स्थिति को लेन के लिए हम न जाने कितने महापुरुषों की क़ुरबानी देंगे????????
जय भीम नमो बुद्धाये

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