SUKH PAL DHINGAN

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Friday, May 18, 2012


किसी को मत निकालो..... कविराज बिंझले नादान है.... उसे नही पता की वो उसके इस तरहा के प्रचार-प्रसार से स्वयम और समाज की कितनी हानी कर रहा है... और फिर कविराज ही क्यु.... मैंने विगत मे बहुत से लोगोंको देखा है जो चमार-महार कर रहे थे... जो कांशीराम-खापर्डे कर रहे थे... महाराष्ट्र-उत्तर भारत कहा रहे थे. बाबासाहब के समय भी चमार अपने आप को महारो से श्रेष्ठ समझते थे... इसलिये बाबासाहब के साथ धम्म मे परिवर्तीत नही हुये... उन्हे बामनो की लाथ खाने की शरम नही थी, लेकिन उनसे बचाने वाले बाबा का हाथ थामना उचीत नही लग रहा था. काल के साथ-साथ महार शैक्षणिक, आर्थीक दृष्टी से तो प्रगत हो गये लेकिन महारष्ट्र की Demography के वजहसे राजकिय दृष्टिसे कुछ खास नही कर सके... जब की महार लोग सभी बहुजनो को एक मानते रहे... चाहे वे चमार रहे या मांग या भंगी,और इस ही बात की तहत मुझे याद है की मेरे बचपण मे हमारा गाव का गाव BSP का सदस्य था... चंदा दे रहा था..हमारे गाव के लोग ये नही देख रहे थे की कांशीरामजी की जाती क्या थी... आज भी महाराष्ट्र के कही सारे लोग मायावतीजी का साथ देते है... उनकी जाती नही द्खते.. उनपर भरोसा रखते के वो चमार होते हुये भी बाबासाहब का मिशन आगे ले जायेगी. ऐसा करते हुये, महार लोग बाबासाहब के वंशज को भी निचा दिखाने मे कोही कसर नही छोडते... वैसे बाबासाहब की मिशन मे वंशवाद की काबिलियत के सामने कोही जगह नही. इतना महारोका BSP/कांशीरामजी/मायावतीजी के प्रती समर्पण होते हुये भी मुझे नही पता की किस कारन से तारसेम सिंग बैस जैसे senior व्यक्ती द्वारा भी महारो ने कसे कांशीरामजी को धोका दिया/खापर्डे कैसे बुरे थे,इस बारे मे चर्चा की शुरुवात हुई.. इस बात से तो ये बाबासाहब की मिशन के लोगोने (चाहे वे महार हो या चमार या अन्य) सिखना चाहिये, की आज भी जाती का जहर कितना प्रभावि है... जब मिशन से जुडे/अपने आप को बाबासाहब का सिपाई मानने वाले लोग भी इससे नही बचे, तो आम जनता की क्या सोच रहती होगी. हम लोगोने यद्द्यपी हिंदु धर्म छोडा है, महार वतन भी छोडा है, शैक्षणिक/आर्थिक दृष्टि से पिछे नही है,,, फिर भी हमे हम पुर्वाश्रमी के महार है और हिदु जाती के शीडियो पर उनसे निचे खडे है इसकी बार बार याद दिलाई जाती है (कुछ लोगोंके पोष्टद्वारा) ... मुझे कांशीरामजी/मायावतीजी के intentions पर कोही शक नही... मुझे पुरा विस्वास है की वे बौध्द धम्म का स्विकार करेंगे..बाबासाहब का मिशन आगे बढायेंगे/बढाभी रहे है. लेकिन उनके लोग पर शक होता है.. दुनीयासे उनके जाने के बाद मिशन का क्या हाल होगा इस बात पर डर लगा रहता है.... कही कविराज जैसे लोग यदि मायावतीजी के उत्तराधीकारी हुये तो बाबासाहब के सपने का क्या होगा इ. प्रश्न मन मे उठते... इसलिये मै सोचता हु की जबतक बहुजन समाज मे हर जाती समान प्लाटफार्म (level playing field) पर खडी नही होती , बहुजन समाज का एक होने के विरोध मे हमेशा खतरा बना रहेगा... बल्की ऐसा होना चाहिए की जो जाती के शिडियो पर 19 था वो आज राजनितीक, आर्थीक, सामाजीक, संस्कारिक रुप से उनसे 20 होना चाहिए. साथ ही आपस मे रोटि बेटि के व्यवहार को बढावा देना चाहिए. जिस तरहा चमार राजनिती के शिखर पर काबिज हो रहे है और कविराज जैसे लोग इसपर इतरा रहे है... वैसे ही महाराष्ट्र से भी मायावतीजी के समांतर राजनितीक शिखर चढने वाला कोही होना चाहिए. महाराष्ट्र का व्यक्ती यदी समांतर प्रगती करता है तो मिशन भटकने का सवाल ही नही होता क्युंकी उनके आदर्श बाबासाहब और बुध्द के अलावा कोही दुसरा है ही नही/और हो भी नही सकता... on the other hand यदी मिशन की बागडोर दुसरोके हाथ रहती तो उसके स्वयम भी दुसरे आदर्श हो सकते और ideally दुसरे आदर्श नही भी माने तो वे समाज के भय से या राजनितीक मजबुरी के तहत सीधा-सीधा फैसला नही कर सकते. उदहरण के तहत कांशीरामजी की भी मजबुरी रही की जबतक कोही PM नही बनता तबतक बौध्द धम्म नहि लेंगे. यदि वे ऐसा करते तो शायद राजनितीक प्रगती जिस तेजी से होनी है उसमे कुछ ब्रेक लग जायेगा... संक्षेप मे चुकी हम जाती के सिडिपर निचे की पायदान पर खडे है (१९ है) तो हमे राजनितीक क्षेत्र मे २० बनना पडेगा....... सोचो... शायद मै गलत भी हो सकता हु

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