" अंधविश्वास " दुर्घटना का डर |
दुर्घटना का डर ही अंधविश्वासों को बढ़ावा देता है. यात्रा में आप के पास अगर ताबीज हो तो यात्रा में कोई कष्ट नहीं होता. इसिलिए आप उसे सदैव अपने पास रखते है. परन्तु क्या उसका यह अर्थ नहीं हुआ कि आपका जीवन भी उस ताबीज के गुम हो जाने पर समाप्त हो जायेगा. एक मै आपको किस्सा बताना चाहता हू, एक परीक्षा भवन में प्रश्नपत्र मिलने से पूर्व एक लड़की बेहोश हो गई. उसे अलग कमरे में ले जा कर होश में लाया गया वह 'मेरे हनुमानजी' कह कर फिर बेहोश हो गई. बाद में पता चला कि वह अपने साथ हनुमानजी की एक छोटीसी मूर्ति सदैव रखती है. परन्तु उस दिन भूल गई थी. क्या दशा हुई उसकी ! उस ने तो अपने मष्तिष्क के कार्य का अधिकांश भाग हनुमानजी को सौप दिया था. जीवन की परीक्षा में भी अन्धविश्वासों द्वारा यही दशा होती है. हमारे जीवन में पहले ही काफी दुःख तथा शोक के साधन वर्तमान है, फिर हम व्यर्थ ही दुखों का समान क्यों एकत्र करते फिरते है. अगर कोई व्यक्ति किसी वस्तु के अशुभ होने में अन्धविश्वास रखता है, तो दुर्घटना उस वस्तु के कारण नहीं होती, बल्कि व्यक्ति की अपनी आतंरिक अवस्था के कारण होती है. यही खेद है कि हम केवल उस समय को याद रखते है, जब दुर्घटना हुई. और बीसियों बार जब कुछ नहीं हुआ, उसे भूल जाते है. धर्म के नाम पर जो प्रथायें, अंधविश्वास हमारे भारत में प्रचलित है, उन्हें देख कर या सुन कर कोई हमारे विषय क्या धारणा बनाएगा? यहाँ भोली स्त्रियां संतान की लालसा में गरम लहू भी चाटती है. कोई भी आधे बालिश्त का पत्थर वरदान देने की क्षमता रखता है. हर मोहल्ले में कोई न कोई वृक्ष की पूर्ति कर देता है. यह सब तो हुआ. परन्तु जब पढ़े लिखे सुशिक्षित तथा सुसंस्कृत स्त्री और पुरुष इसलिए इन सब को मानना आरम्भ कर देते है कि उन का नुकसान ही क्या है. हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम स्वयं अपने मन से डर को निकल दे तथा दूसरों के भय को हटाने का दृढ़ संकल्प कर ले. अगर हमारी कोई सहेली किसी अंधविश्वासों में फंसी हू है, तो उस अंधविश्वास की तह तक पहुचने का प्रयत्न करे. एक बार किसी अंधविश्वास तक पहुच जाने पर उस में विश्वास करने के लिए स्थान नहीं रहता, गुंजाईश नहीं रहती. बुद्धिमत्ता तो इसी में है की हम सब अंधविश्वासों को अपने मष्तिष्क की कसौटी पर कसे और उन को हावी न होने दे, अन्यथा तैतीस करोड़ देवीदेवताओं की आबादी बढ़ती जायेगी और ब्राह्मणवादी पंडो की दुकान चलती रहेगी.
By: Mahendra Gourkhede
दुर्घटना का डर ही अंधविश्वासों को बढ़ावा देता है. यात्रा में आप के पास अगर ताबीज हो तो यात्रा में कोई कष्ट नहीं होता. इसिलिए आप उसे सदैव अपने पास रखते है. परन्तु क्या उसका यह अर्थ नहीं हुआ कि आपका जीवन भी उस ताबीज के गुम हो जाने पर समाप्त हो जायेगा. एक मै आपको किस्सा बताना चाहता हू, एक परीक्षा भवन में प्रश्नपत्र मिलने से पूर्व एक लड़की बेहोश हो गई. उसे अलग कमरे में ले जा कर होश में लाया गया वह 'मेरे हनुमानजी' कह कर फिर बेहोश हो गई. बाद में पता चला कि वह अपने साथ हनुमानजी की एक छोटीसी मूर्ति सदैव रखती है. परन्तु उस दिन भूल गई थी. क्या दशा हुई उसकी ! उस ने तो अपने मष्तिष्क के कार्य का अधिकांश भाग हनुमानजी को सौप दिया था. जीवन की परीक्षा में भी अन्धविश्वासों द्वारा यही दशा होती है. हमारे जीवन में पहले ही काफी दुःख तथा शोक के साधन वर्तमान है, फिर हम व्यर्थ ही दुखों का समान क्यों एकत्र करते फिरते है. अगर कोई व्यक्ति किसी वस्तु के अशुभ होने में अन्धविश्वास रखता है, तो दुर्घटना उस वस्तु के कारण नहीं होती, बल्कि व्यक्ति की अपनी आतंरिक अवस्था के कारण होती है. यही खेद है कि हम केवल उस समय को याद रखते है, जब दुर्घटना हुई. और बीसियों बार जब कुछ नहीं हुआ, उसे भूल जाते है. धर्म के नाम पर जो प्रथायें, अंधविश्वास हमारे भारत में प्रचलित है, उन्हें देख कर या सुन कर कोई हमारे विषय क्या धारणा बनाएगा? यहाँ भोली स्त्रियां संतान की लालसा में गरम लहू भी चाटती है. कोई भी आधे बालिश्त का पत्थर वरदान देने की क्षमता रखता है. हर मोहल्ले में कोई न कोई वृक्ष की पूर्ति कर देता है. यह सब तो हुआ. परन्तु जब पढ़े लिखे सुशिक्षित तथा सुसंस्कृत स्त्री और पुरुष इसलिए इन सब को मानना आरम्भ कर देते है कि उन का नुकसान ही क्या है. हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम स्वयं अपने मन से डर को निकल दे तथा दूसरों के भय को हटाने का दृढ़ संकल्प कर ले. अगर हमारी कोई सहेली किसी अंधविश्वासों में फंसी हू है, तो उस अंधविश्वास की तह तक पहुचने का प्रयत्न करे. एक बार किसी अंधविश्वास तक पहुच जाने पर उस में विश्वास करने के लिए स्थान नहीं रहता, गुंजाईश नहीं रहती. बुद्धिमत्ता तो इसी में है की हम सब अंधविश्वासों को अपने मष्तिष्क की कसौटी पर कसे और उन को हावी न होने दे, अन्यथा तैतीस करोड़ देवीदेवताओं की आबादी बढ़ती जायेगी और ब्राह्मणवादी पंडो की दुकान चलती रहेगी.
By: Mahendra Gourkhede
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