Aamit Gote
बुद्धम सरणम गच्छामी,
धम्मम सरणम गच्छामी,
संघम सरणम गच्छामी.
घबराए जब मन अनमोल,
ह्ऱिदय हो उठे डाँवाडोल,
घबराए जब मन अनमोल,
और ह्ऱिदय हो डँवाडोल,
तब मानव तू मुख से बोल,
बुद्धम सरणम गच्छामी.
जब अशांति का राग उठे, लाल लहू का फाग उठे,
हिंसा की वो आग उठे, मानव में पशु जाग उठे,
ऊपर से मुस्काते नर, भीतर ज़हर रहें हों घोल.
तब मानव तू मुख से बोल, बुद्धम सरणम गच्छामी.
जब दुःख की घड़ियाँ आएँ
सच पर झूठ विजय पाए
इस निर्मल पावन मन पर
जब कलंक के घन छाएँ
अन्यायों की आँधी में
कान उठे जब तेरे डोल
रूठ गया जब सुन ने वाला
किस से करूँ पुकार
प्यार कहाँ पहचान सका ये
ये निर्दय संसार
निर्दयता जब ले ले धाम
दय हुई हो अन्तर्याम
जब ये छोटा सा इंसान
भूल रहा अपना भगवान
सत्य तेरा जब घबराए
श्रध्ध्हा हो जब डाँवाडोल
जब दुनिया से प्यार उठे, नफ़रत की दीवार उठे,
माँ कि ममता पर जिस दिन, बेटे की तलवार उठे,
धरती की काया काँपे, अंबर डगमग उठे डोल,
तब मानव तू मुख से बोल, बुद्धम सरणम गच्छामी.
दूर किया जिस ने जन\-जन के व्याकुल मन का अंधियारा,
जिसकी एक किरन को छूकर चमक उठा ये जग सारा,
दीप सत्य का सदा जले, दया अहिंसा सदा फले,
सुख शांति की छाया में जन\-गन\-मन का प्रेम पले,
भारत के भगवान बुद्ध का गूंजे घर\-घर मंत्र अमोल,
हे मानव नित मुख से बोल, बुद्धम सरणम गच्छामी.
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बुद्धम सरणम गच्छामी,
धम्मम सरणम गच्छामी,
संघम सरणम गच्छामी.
घबराए जब मन अनमोल,
ह्ऱिदय हो उठे डाँवाडोल,
घबराए जब मन अनमोल,
और ह्ऱिदय हो डँवाडोल,
तब मानव तू मुख से बोल,
बुद्धम सरणम गच्छामी.
जब अशांति का राग उठे, लाल लहू का फाग उठे,
हिंसा की वो आग उठे, मानव में पशु जाग उठे,
ऊपर से मुस्काते नर, भीतर ज़हर रहें हों घोल.
तब मानव तू मुख से बोल, बुद्धम सरणम गच्छामी.
जब दुःख की घड़ियाँ आएँ
सच पर झूठ विजय पाए
इस निर्मल पावन मन पर
जब कलंक के घन छाएँ
अन्यायों की आँधी में
कान उठे जब तेरे डोल
रूठ गया जब सुन ने वाला
किस से करूँ पुकार
प्यार कहाँ पहचान सका ये
ये निर्दय संसार
निर्दयता जब ले ले धाम
दय हुई हो अन्तर्याम
जब ये छोटा सा इंसान
भूल रहा अपना भगवान
सत्य तेरा जब घबराए
श्रध्ध्हा हो जब डाँवाडोल
जब दुनिया से प्यार उठे, नफ़रत की दीवार उठे,
माँ कि ममता पर जिस दिन, बेटे की तलवार उठे,
धरती की काया काँपे, अंबर डगमग उठे डोल,
तब मानव तू मुख से बोल, बुद्धम सरणम गच्छामी.
दूर किया जिस ने जन\-जन के व्याकुल मन का अंधियारा,
जिसकी एक किरन को छूकर चमक उठा ये जग सारा,
दीप सत्य का सदा जले, दया अहिंसा सदा फले,
सुख शांति की छाया में जन\-गन\-मन का प्रेम पले,
भारत के भगवान बुद्ध का गूंजे घर\-घर मंत्र अमोल,
हे मानव नित मुख से बोल, बुद्धम सरणम गच्छामी.
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