by ::--)) Aar Ravi Vidrohee ......>> चुप रहो जी, …… मैं 'बंसी' वाले की पूजा कर लूँ, बाद में तुम्हारी बात सुनुगी ! तब तक आप, ‘सूर्य’ को पानी चढ़ा कर आओ // सुन रे, 'छोकरे' !, ‘तूँ' भी आ ...... मुझे, ‘महाभारत’ की कथा सुना / तब से सुनाना, जब ‘कर्ण’ का जन्म हुआ था / और ‘छौरी’ से कहो, ‘केवट’ वाला पाठ दुबारा याद कर ले / वो वाला अच्छी तरह याद करना, जहाँ 'प्रभू' चरणों के ‘स्पर्श’ से ‘अहिल्या’ को ’मुक्ति’ मिलती है //
उफ्फ ! ये अखबार, अभी तक यही पडा है, और ये, कैसी - कैसी खबरों से भरा पडा हैं / ‘स्त्रीयों’ पर, ‘अत्याचार’, ‘लड़कियों’ का ‘बलात्कार’ /
अरे वाह ये तो, बहुत अच्छी खबर हैं, ‘एन. डी.’ निकला, ‘शेखर’ का बाप !! हे ‘प्रभू’ औरतें कब तक, सहेंगी 'शोषण' ! ‘औरत’ तुने इतनी ‘कमजोर’ क्यों बनाई ?
अरे, ‘मायावती’ की ‘मूर्ती’ तोड़ दी ? अच्छा हुआ, अपने जीते जी, ‘मूर्ती’ बनवाना कोई अच्छी बात हैं क्या ? ‘बंसी’ वाले, अब तो आजा, इस दुनिया को बचाने के लिए, 'जनता' की सुनने वाला अब कोई नहीं !
ओह ! ये, ‘आंबेडकर’ की फोटो, कहाँ से आई, किसने रख दी ? जरुर ‘अखबार’ वाला ही रख गया होगा / ‘ऐ जी’, सुनो इसे बाहर, ‘मोची’ को दे आओ, हमारे किस काम की ? ........................ 'रवि विद्रोही ' उर्फ़ 'मुकन्दा'
अरे, ‘मायावती’ की ‘मूर्ती’ तोड़ दी ? अच्छा हुआ, अपने जीते जी, ‘मूर्ती’ बनवाना कोई अच्छी बात हैं क्या ? ‘बंसी’ वाले, अब तो आजा, इस दुनिया को बचाने के लिए, 'जनता' की सुनने वाला अब कोई नहीं !
ओह ! ये, ‘आंबेडकर’ की फोटो, कहाँ से आई, किसने रख दी ? जरुर ‘अखबार’ वाला ही रख गया होगा / ‘ऐ जी’, सुनो इसे बाहर, ‘मोची’ को दे आओ, हमारे किस काम की ? ........................ 'रवि विद्रोही ' उर्फ़ 'मुकन्दा'
No comments:
Post a Comment