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Friday, July 15, 2011

गुरुपूर्णिमा को भगवान बुद्ध के कारण पुरे विश्व में जाना जाता है ।

Mahendra Gourkhede
गुरुपूर्णिमा को भगवान बुद्ध के कारण पुरे विश्व में जाना जाता है ।
आषाढ माह का अपना एक विषेष महत्व है धार्मिक एवं वैज्ञानिक रूपसे भी इस माह वर्षा ऋतु का आरंभ होते ही वर्षा से जमीन पर हरा हरा घास उगने लगता है, जैने धरती ने हरी रंग की शाल ओढ़ी हो। मौसमी वनस्पति उगने लगती है। इसी माह से रंग बिरंगे फुलों का आना शुरू होता है साथ-साथ विविध प्रकार के जीव जंतू भी पैदा होते है। मौसमी वनस्पति सब्जियां उगना शुरू हो जाता है। खेती में अनाज की पैदावार के लिए किसानों का बहुत ही महत्वपूर्ण माह होता है। इस आषाढ़ माह में आने वाली पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा या गुरुपूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। पूनम के दिन एक वैज्ञानिक महत्त्व भी होता है। बौध्द धर्म में पुर्णिमा का विशेष महत्व है। वैज्ञानिक तौर पर पूनम के दिन महासागर में भर्ती आती है। समुद्र में रहने वाले सभी जीव-जंतु प्रजनन के लिए समुद्र के किनारे आते है। पूनम की रात बहुत मनभावन होती है। भारत देश में सनातन समय में शाक्य राज्य के लोग अषाढ़ माह वर्षा ऋतू के आरंभ में एक उत्सव मनाया करते थे। यह उत्सव सात दिन तक मनाया जाता था। इस उत्सव में क्या राजा और क्या प्रजा भी सम्मिलित होते थे। राजा स्वयं खेत में हल चलाया करते थे। यह उत्सव बड़े ही आमोद-प्रमोद के साथ बड़े ही शान शौकत के साथ मनाया जाता था। सातवे दिन शाक्य राज्य की रानी महामाया प्रातः काल उठी, सुंगधित जल से स्नान किया, चार लाख कार्षापणों (सोने के सिक्के) का दान दिया। अच्छे से अच्छे गहने पहने, व्रत रखें और अच्छे से अच्छा खाना खाया। तदनतंर वह खुब सजे सजाया शयनागार में सोने के लिए चली गई। उस रात राजा शुघ्दोधन और महामाया निकट हुए और महामाया ने गर्भधारण किया। इस निद्राग्रस्त महामाया ने एक अति सुन्दर स्वप्न देखा। तब आषाढ पूर्णिमा का दिन था। रानी महामाया की गर्भ में संसार के करुणा के महामानव राजकुमार सिद्धार्थ का समावेश हुआ‌‍। राजकुमार सिद्धार्थ का जब जन्म हुआ वह राजवंश होने के कारण उसका जन्म अति सुन्दर महल में होना था। परन्तु एैसा नहीं हुआ। प्रकृति के महामानव का जन्म प्रकृति के रमणीय वातावरण में लुम्बिनी के शाल वन में शाल वृक्ष के निचे जन्म हुआ। यह दिन वैशाख पूर्णिमा का दिन था। राजकुमार को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई वह भी प्रकृति के खुले वातावरण में उरुवेला के वन में पीपल वृक्ष के निचे हुई। पीपल वृक्ष के बारेमे कहा जाता है कि, इस पेड़ के निचे भुत वास करते है, ऐसी मान्यता है। परन्तु भगवान बुद्ध ने वैज्ञानिक तौर पर अपने उपदेश में कहा है कि, पीपल वृक्ष ही एक ऐसा वृक्ष है कि, जो वातावरण को सर्वाधिक प्राणवायु देता है। भगवान बुद्ध ने अंतिम प्रवास कि घोषणा पूनम कि दिन ही कि थी। इसके तीन माह बाद वैशाख पूर्णिमा के दिन ही प्रकृति के खुले वातावरण में उषा कल में दो शाल वृक्षों के निचे कुशीनारा (वर्तमान में कुशीनगर) में महापरिनिर्वाण हुआ। वे प्रकृति के अदभूत प्राकृतिक महामानव थे। ग्रंथो में लिखा है कि, राजकुमार का विवाह और गृहत्याग भी आषाढ़ पुर्णिमा के दिन ही हुआ था। राजकुमार सिद्धार्थ नई खोज के लिए घने जंगलों में निरंजना नदी के तटपर तपस्या कर रहे थे। तपस्या इतनी तीव्र एवं कठोर थी कि, उन्हें अपने शरीर कि परवाह न थी और न वातावरण के मौसम की और न जंगल में रहने वाले हिंस्त्र प्राणियों से कोई डर नहीं था। यह तीव्र कठोर तपस्या देख पांच परिव्राजक जो ब्राह्मण पुत्र थे बहुत ही प्रभावित हुए यह पांचों कौंडिन्य, अश्वजित, वप्प, माहनाम एवं भद्दीय थे। ये पांचों परिव्राजक भगवान की सेवामें रत थे। राजकुमार सिद्धार्थ को सम्बोधि प्राप्ति हुई। तब भगवान के सामने प्रश्न आया कि, मै ज्ञान किसको दू। भगवान बुद्ध के मनमे आया कि, यह ज्ञान सर्वश्रेष्ठ ॠषि भृगृ एवं आलर कालम को दी जाए, परन्तु इनका परिनिर्वाण हो चूका था। भगवान को याद आया, अपने पांच परिव्राजक जिन्होंने उनकी बहुत सेवा कि थी, और यह पांचों परिव्राजक उत्तर प्रदेश के सारनाथ (वर्तमान में वारानसी) के ॠषि पतन मृगदाय वन में ठहरे हुए है। भगवान बुद्ध सारनाथ आए और अषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांचो परिव्राजक कों धर्मोपदेश किया, और धर्मोपदेश में कहा कि, संसार के चार आर्य सत्य है. 01.दुःख है। 02.दुःख का कारण है। 03.दुःख का निरोध है। 04.दुःख के निवारण का मार्ग है। और वह है आर्य अष्टांगिक मार्ग, यह आठ अंग वाला मार्ग है। 1.सम्यक ज्ञान 2.सम्यक संकल्प 3.सम्यक वचन 4.सम्यक कर्मान्त 5.सम्यक आजीव 6.सम्यक व्यायाम 7.सम्यक स्मृति 8.सम्यक समाधि। 1. सम्यक ज्ञान-से मतलब यह है कि, आर्य सत्यों का ठीक ठाक ज्ञान हो। 02. सम्यक संकल्प-से तात्पर्य यह है कि, आदमी को जोभी कार्य करना हो, उसके करने के लिए मनमें पक्का निश्चय होना चाहिए। 03. सम्यक वचन-जो बोला जाता वह सत्य होना चाहिए। 04. सम्यक कर्मान्त-आदमी को उस वस्तु से दुर रहना चाहिए जिससे हिंसा,द्गोह, दुराचार उत्पन्न होता हो। 05. सम्यक आजीव-जीवन में न्यायपूर्ण आजीविका हों। 06. सम्यक व्यायाम-सत्यकर्म के लिए सतत उद्योग करना। 07. सम्यक स्मृति-जीवन में लोभ माया आदि से बचना चाहिए। 08. सम्यक समाधि-राग-द्वेष रहित चित्त एकाग्रता होना चाहिए। परित्य समुत्पाद का सिद्धांत, कर्म कारण वश सिद्धांत, शुन्य का सिद्धांत का अघ्ययन कराया और कंठस्थ कराया। इसी दिन कि धम्म चक्र प्रवर्तन दिन भी कहा जाता है। लोक्शास्ता गुरु और वे पांच शिष्य कि गुरु शिष्य परंपरा शुरू हुई। इस महान देश से शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार संपुर्ण विश्व में हुआ। विश्वभर से विदेशी लोग गुरु के दर्शनार्थ इसी माह से भारत में आना शुरू हो जाता है। गुरु शिष्य परम्परा भारत देश से लुप्त हो गई थी। परन्तु कही ना कही जरुर जीवित रही। छोटा पडौसी देश बर्मा में आज भी यह गुरु शिष्य परम्परा जैसी की वैसी जीवित है और यही कारण है कि, इस अषाढ़ पूर्णिमा कों गुरु पुर्णिमा के नाम से जाना जाता है और इस महान देश कों गुरु देश के नाम से जाना जाता है। आज हमारे देश में गुरु पूर्णिमा अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है। भगवान बुद्ध ने जगत के संपूर्ण मानव जाती कों मानव कल्याणकारी शुद्ध धर्म दिया। गुरु पुर्णिमा के दिन वर्षावास शुरू होता है, और यह आश्विनी पुर्णिमा कों समाप्त होता है। वर्षावास का अर्थ है कि, वर्षाॠतु के समय एक स्थान पर वास करना। इस समय शुद्ध धर्म का पठन होता है, धम्म देशना होती है, प्रवचन होते है। भगवान बुद्ध वर्षावास के समय एक स्थान पर रूककर मानव जाती कों धर्मोपदेश करते थे। भगवान बुद्ध ने अपने जीवन में सवार्धिक २५ वर्षावास उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती में किये थे। श्रावस्ती यह स्थान आज भी पुरे विश्व में वन्दनीय है। आनेवाली गुरुपूर्णिमा के दिन से शुरू होनेवाले वर्षावास के पवित्र दिन कों लोकशास्ता गुरुदेव कों नमन। यही गुरुपूर्णिमा है और इसी कारण भारत देश में इस पुर्णिमा कों गुरुपूर्णिमा कहते है। परन्तु कुछ भारत के पाखण्डीयों भगवान बुद्ध के गुरुपूर्णिमा कों अपना रूप दे दिया।
By: Mahendra Gourkhede
7 hours ago · Unlike · ·

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