बाबा साहिब के निकट सहयोगी , श्री सोहन लाल शास्त्री अपनी पुस्तक " बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर के साथ २५ बर्ष " में लिखते हैं कि सरदार बल्लभ भाई पटेल ने एक प्रसिद्ध ब्रह्मिन रानीतिक K .M . MUNSHI , जो संबिधान सभा के एक सदस्य थे, से कहा था कि ......... " संबिधान में रिजर्वेशन होने से क्या होगा ? गृह मंत्रालय इन अनुसूचित जातिओं को IAS , IPS आदि प्रशासनिक नोकरीओं में आरक्षण नहीं देगा / केवल कुछ क्लर्क रिजर्वेशन में नोकरी ले गए तोह जियादा अंतर नहीं पड़ेगा / " यह थे ब्रह्मिन बाद के धनी लोह पुरष सरदार पटेल की अपनों के प्रति सोच // क. एम्. मुंशी ने एक बार चलती गाड़ी में बाबा साहिब को पटेल के इस दलित विरोधी विचार से अबगत कराया था / संबिधान पारित हो जाने के बाद ...... जवाहर लाल नेहरु तथा उन जैसे अन्य नेताओं का विचार था कि स्ब्तंत्र भारत केसुप्रेमे कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ... बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर को नियुकत कीया जाये, तां कि बह संबिधान के आशय और उदेश्य की सही ब्याख्या कर सकें और देश को यथार्थ सम्वैधानिक न्याय प्रदान कर सकें , किन्तु सरदार पटेल के कानो में जैसे ही भनक पड़ी , उन्होंने फोरन .... एक गुजरती श्री कनिया को सुप्रेमे कोर्ट का प्रधान चीफ जस्टिस नियुक्त कर दिया ///
सरदार पटेल के यह प्रविर्ती मनु के उस सिधांत से मेल खाती है ---- " शुद्र कोरजा और न्याधीश बनने का अधिकार नहीं है /"
कट्टर ब्रह्मिन्बादी तिलक म्नुसिमृति का कानून स्वीकारने में गर्व का अनुभव करते हैं तथा विधान मंडलों में पिछड़ों और अछूतों के प्रतिनिधित्व पर सवाल करते हैं कि , " क्या संसद खेत हैं , क्या दर्जी वहां कपड़ा सीने , कुर्मी हल चलाने, तथा तेली तेल पेरने का काम करेंगे ? " अर्थात तिलक बहुजनो को संसद में प्रवेश तक्क नहीं ररने देना चाहते थे // वहीँ सरदार पटेल का कहना था कि ..... " मैंने तो डॉ. आंबेडकर को संबिधान सभा में प्रवेश होने से वंचित करने के लिए .... दरवाजा तो क्या .... खिड़कियाँ और रोशनदान भी बंद कर दिए हैं / "
डॉ. आंबेडकर संबिधान में आरक्षण तब्ब तक्क जरी रखना चाहते थे , जभ तक्क समाज में आर्थिक - सामाजिक गैर - बराबरी बनी रहे, ... जिसे किसी न किसी प्रकार समाप्त करने के प्रयास हो रहे हैं /// ............. विथ थैंक्स फ्रॉम .... मूक्वक्ता
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