SUKH PAL DHINGAN

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Friday, June 24, 2011



    • Sukh Pal
      चन्द्रगुप्त मोर्य ने अपनी सभा में कहा aratat जनपद /राज्य के कुल्मुक्तों और वाही प्रदेश के विभिन गणराज्यों से आये हुए गनमुक्तों का में स्वागत करता हूँ //// आज वाही प्रदेश के अधिकांश  गनपद यवनो की दासता से मुक्त हो चुके... हैं और शीग्र ही अन्य जनपद भी यवनो की दासता से मुक्त होंगे ////aratat जनपद ने अपने प्रशाशन का utardayitav मेरे कन्धों पे डाला है जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार भी किया है परन्तु वास्तव में जनपदों को शाशकों की अपेक्षा एक प्रणाली की आवश्यकता होती हे एक ऐसी प्रणाली जो जनपदीय राजनीति की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठ कर संपूरण राष्ट्र को एक परिवार, एक जनपद के रूप में देखे/// क्योंकि जनपद राष्ट्र का उसी प्रकार अविभाजीय अंग होता है //विभिन्न जनपद अपने अस्तीत्व के लिए संघरशरत क्यों रहते हैं आप सब //////क्या आप अपने परिवार के पीड़ित व्यक्ति को देखकर पीड़ित नहीं होते / //क्या  अपने   अभावग्रस्त परिवार के सदस्य का अभाव दूर करने का प्रयतन नहीं करते// /अपने परिवार के किसी सदस्य के सुख दुःख में आप चुपकैसे रह सकते हैं ////समाज के लिए व्यक्ति का त्याग हमारी परम्परा हे i///किस लिए शिव ने विसथान किया था//किस लिए महारिषि दधिची ने अपनी अश्थियों का दान किया था//आज समाज के लिए व्यक्ति और राष्ट्र के लिए समाज त्याग करने के लिए तत्पर क्यों नहीं/// /क्यों एक समाज को आभाश होता हे i की दुसरे समाज का विनाश करके ही विकसित और पलवित हो सकता हे ////क्यों एक जनपद को ये लगता हे की दूसरा जनपद हमारे विकाश में बाधक हे ///i/क्या जड़ें उस  पर खड़े  विरिक्ष से  संघरश्रत  हैं //हम  संघरश्रत    क्यों  हैं //// /बीज  दिखाई  नहीं  देता उसी तरह हमारी  राष्ट्रीयता  भी  दिखाई   नहीं  देती  पर  वो हर  भारतीय  में  विदमान  है///यदि  अपने  बीज  को  टटोलो  तो  राष्ट्रीयता  का  आभाष  होगा 

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