SUKH PAL DHINGAN

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Tuesday, June 21, 2011

अ-धर्म क्या है ? Lekh from Buddha and His Dhamma
1. परा-प्राकृतिक में विश्वास अ-धर्म  है १.  जब भी कोई घटना घटती है, आदमी हमेशा यह जानना चाहता है कि यह घटना  कैसे घटी? इसका कारण है? २.  कभी-कभी कारण और उससे फलित होने वाला कार्य एक दूसरे के इतने समीप होते है कि कार्य के कारण का पता लगाना कठिन नही        ... होता। ३.   लेकीन कभी-कभी कारण से कार्य इतना दूर होता कि कार्य के कारण का पता लगाना कठिन हो जाता है। सरसरी दृष्टी से देखने से उस कार्य का कोई कारण  प्रतीत ही नहीं होता | ४. तब प्रश्न पैदा होता है कि अमुक घटना कैसे घटी ? ५. बड़ा सरल सीधा-साधा उत्तर है कि घटना किसी परा-प्राकृतिक कारण  से घटी जिसे बहुधा ‘करिश्मा’ या ‘प्रातिहार्य’ भी कहा जाता है | ६. बुद्ध के कुछ पूर्वजों ने इस प्रश्न के विविध उत्तर दिए थे| ७. पकुद क्च्चान  यह मानता ही नहीं था कि हर कार्य का कारण  होता है |  उसका मत था कि घटनाएँ बिना किसी कारण से घटती है | ८. मक्खली गोशाल मानता था ही हर घटना का कारण होना चाहिए| लेकिन वह प्रचार करता था कि कारण आदमी कि शक्ति के बाहर किसी ‘प्रकृति’ किसी ‘अनिवार्य’ आवश्यकता’, किसी ‘अनुत्पन्न नियम’ अथवा किसी ‘भाग्य’ ही खोजना चाहिए | ९. भगवान बुद्ध ने इस प्रकार  के सिद्धांतों का खंडन किया| उनका कहना था कि इतना ही नहीं कि हर घटना का कोई ना कोई कारण होता है; बल्कि वह कारण या तो कोई ना कोई मानवी कारण होता है या प्राकृतिक होता है| १०.काल (समय), प्रकृति, आवश्यकता (?) आदि को किसी घटना का कारण मानने के खिलाफ उनका यही विरोध था | ११. यदि काल (समय), प्रकृति, आवश्यकता (?) आदि ही किसी घटना के एकमात्र कारण है, तो हमारी अपनी स्थिति क्या रह जाती है? १२. तो क्या आदमी काल (समय), प्रकृति, अकस्मात-पन, इश्वर, भाग्य,आवश्यकता (?) आदि के हाथ. की मात्र कट-पुतली है? १३. यदि आदमी स्वतंत्र नहीं है तो उसके अस्तित्व का ही क्या प्रयोजन है? यदि आदमी परा-प्राकृतिक में विश्वास रखता है तो उसकी बुद्धि का ही क्या प्रयोजन है? १४.यदि आदमी स्वतंत्र है, तो हर घटना का या तो कोई मानवी कारण होना चाहिए, या प्राकृतिक कारण| कोई घटना ऐसी हो ही  नहीं सकती जिसका परा-प्राकृतिक कारण हो| १५. यह संभव है की आदमी किसी घटना के वास्तविक कारण का पता न लगा सके| लेकिन यदि वह बुद्धिमान है तो किसी ना किसी दीन पता लगा ही लेगा| १६. परा-प्राकृतिक-वाद का खंडन करने में भगवान बुद्ध के तीन हेतु थे— १७. उनका पहला हेतु था की आदमी बुद्धिवादी बने| १८. उनका दूसरा हेतु था की आदमी स्वतंत्रतापूर्वक सत्य की खोज कर सके | १९. उनका तीसरा उद्देश्य था की मिथ्या-विश्वास के प्रधान-कारण  की जड़ काट दी जाय,क्योकि इसके परिणाम-स्वरूप आदमी की खोज करने की प्रवृत्ति की हत्या हो जाती है| २०. यही बुद्ध धर्म का ‘हेतु-वाद’ है| २१. यह ‘हेतु-वाद’ बुद्ध धर्म का मुख्य-सिद्धांत है| यह बुद्धिवाद की शिक्षा देता है ओर बुद्ध-धर्म यदि बुद्धिवादी भी नहीं है तो फिर कुछ नहीं है| २२.यही कारण है की परा-प्राकृतिक की पूजा अ-धर्म है| See More
2 hours ago · · ·

  • Sanjiv Gaikwad likes this.
    • Sanjiv Gaikwad भ. बुद्ध इन्सान को बुद्धिवादी एवं विज्ञानवादी बनने का संदेश देते है । इसलिये परा-प्राकॄतिक में विश्वास करनेवाले अज्ञानमूलक तथा अ-धर्मी होते है। ज्ञान का प्रकाश ही उन्हें अंधेरे से बाहर निकाल सकता है । जयभीम ।

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