http://www2.bhaskar.com/article/UP-OTH-when-engaging-in-lost-adam-gondvi--2653597.htmlलखनऊ। ‘वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है, उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है। इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का, उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है।’ लिखने वाले एक ऐसा शायर जो अपने समय का मुहावरा बन जाये। जिसकी रचनायें आम आदमी के लिए भी बेहद सहज हो और वह रचनाकार के मकसद से जुड़ जाये ऐसे जनकवि अदम गोंडवी का रविवार को लखनऊ के एसजीपीजीआई में निधन हो गया।
अदम ठेठ गंवई दो टूकपन और बेतकल्लुफ जनरचनाकार थे। वे व्यंग के साथ पैने और धारदार आक्रामकता का भी बोध कराते है। अदम का जन्म 22 अक्तूबर 1947 को उप्र के गोंडा के सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर के आटा गांव में देवी कलि सिंह के घर हुआ। अदम का असली नाम रामनाथ सिंह था। यह संयोग है कि अदम गोंडवी का जन्म गोस्वामी तुलसीदास के जन्म स्थान के करीब हुआ।
मायावती ने प्रख्यात जनकवि रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोण्डवी के निधन पर गहरा दु:ख व्यक्त किया है। अपने शोक संदेश में मु यमंत्री ने कहा कि अदम गोण्डवी मानवतावादी दृष्टिकोण वाले संवेदनशील जनकवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सदैव आम जनता की आवाज को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि गोण्डवी के निधन से साहित्य जगत को हुई क्षति की भरपाई होना कठिन है।
गजलकार के साथ अदम की एक और पहचान थी पहनावे की। वे कविस मेलनों व मुशायरों में घुटनों तक मटमैली धोती सिकुड़ा मटमैला कुर्ता और गले में सफेद गमछा डाले जाते थे एक ठेठ देहाती इंसान के रूप में मंच पर पहुंचते थे। एक नजर में वे कत्तई असर नही डालते थे लेकिन जैसे ही माइक संभलते थे श्रोता गांव के माहौल में खो जाते थे।
निपट गंवई अंदाज में महानगरीय चकाचौंध को हैरान कर देने वाली अदा सबसे जुदा और अदभुत थी। उनमें व्यवस्था के खिलाफ सनातन पीड़ा और विद्रोह रहा है, जो उनकी रचनाओं में बड़ी सहजता से देखायी देता था। वे लिखते है-देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं, कुर्सियों पर फिर वही बापू के बन्दर आ गए। कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नजर, आजकल बाजार में उनके कलेंडर आ गए।
अदम ठेठ गंवई दो टूकपन और बेतकल्लुफ जनरचनाकार थे। वे व्यंग के साथ पैने और धारदार आक्रामकता का भी बोध कराते है। अदम का जन्म 22 अक्तूबर 1947 को उप्र के गोंडा के सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर के आटा गांव में देवी कलि सिंह के घर हुआ। अदम का असली नाम रामनाथ सिंह था। यह संयोग है कि अदम गोंडवी का जन्म गोस्वामी तुलसीदास के जन्म स्थान के करीब हुआ।
मायावती ने प्रख्यात जनकवि रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोण्डवी के निधन पर गहरा दु:ख व्यक्त किया है। अपने शोक संदेश में मु यमंत्री ने कहा कि अदम गोण्डवी मानवतावादी दृष्टिकोण वाले संवेदनशील जनकवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सदैव आम जनता की आवाज को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि गोण्डवी के निधन से साहित्य जगत को हुई क्षति की भरपाई होना कठिन है।
गजलकार के साथ अदम की एक और पहचान थी पहनावे की। वे कविस मेलनों व मुशायरों में घुटनों तक मटमैली धोती सिकुड़ा मटमैला कुर्ता और गले में सफेद गमछा डाले जाते थे एक ठेठ देहाती इंसान के रूप में मंच पर पहुंचते थे। एक नजर में वे कत्तई असर नही डालते थे लेकिन जैसे ही माइक संभलते थे श्रोता गांव के माहौल में खो जाते थे।
निपट गंवई अंदाज में महानगरीय चकाचौंध को हैरान कर देने वाली अदा सबसे जुदा और अदभुत थी। उनमें व्यवस्था के खिलाफ सनातन पीड़ा और विद्रोह रहा है, जो उनकी रचनाओं में बड़ी सहजता से देखायी देता था। वे लिखते है-देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं, कुर्सियों पर फिर वही बापू के बन्दर आ गए। कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नजर, आजकल बाजार में उनके कलेंडर आ गए।
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